Tulsidas Ka Jivan Parichay
| विशेषता | विवरण |
|---|---|
| जन्म वर्ष | 11 August 1497 या 1511 में |
| जन्म स्थान | राजापुर, उत्तर प्रदेश |
| प्रमुख भाषा | अवधी, ब्रज |
| प्रमुख रचनाएं | रामचरितमानस, हनुमान चालीसा |
| मृत्यु | 1623 ई., वाराणसी |
| गुरु | नरहरिदास |
| आंदोलन | रामभक्ति आंदोलन |
Tulsidas ka jivan parichay हमें उस महान संत और कवि के जीवन से परिचित कराता है जिन्होंने रामचरितमानस जैसे कालजयी ग्रंथ की रचना की। तुलसीदास का जीवन भक्ति, समर्पण और आध्यात्मिक साधना से परिपूर्ण था। वे केवल एक कवि नहीं, बल्कि रामभक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उनके द्वारा रचित ग्रंथों ने न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि जनमानस को भी प्रभावित किया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि ईश्वर में अटूट विश्वास और प्रेम से कैसे जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। इस लेख में हम तुलसीदास के जन्म, शिक्षा, साहित्यिक योगदान और उनके भक्ति मार्ग की पूरी जानकारी देंगे।
तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 (1497 या 1511 ई.) में उत्तर प्रदेश के राजापुर (चित्रकूट जिले) में हुआ था। उनका बचपन का नाम रामबोला था। उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था।
तुलसीदास ने संस्कृत, वेद, पुराण, और व्याकरण की शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की। उन्होंने नव्य व्याकरण, मीमांसा, वेदांत और ज्योतिष में भी दक्षता प्राप्त की।
तुलसीदास का विवाह रत्नावली से हुआ था। वे अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते थे। लेकिन एक दिन रत्नावली ने उन्हें झकझोरते हुए कहा:
“लाज न आवत आपको, भूत दई शरीर।
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीत॥“
इस वाक्य ने तुलसीदास को गहरे तक प्रभावित किया और उन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागकर सन्यास ले लिया।
तुलसीदास ने पूरी तरह से रामभक्ति में खुद को समर्पित कर दिया। वे राम नाम का जाप करते हुए काशी, चित्रकूट, और अयोध्या जैसे तीर्थों की यात्रा करने लगे।
तुलसीदास ने कई महान ग्रंथों की रचना की, जो आज भी लोगों को मार्गदर्शन और भक्ति की ओर प्रेरित करते हैं।
तुलसीदास ने हिंदी भक्ति आंदोलन को नया जीवन दिया। उन्होंने रामभक्ति को जनता के बीच पहुँचाया, जिससे समाज में भक्ति, नैतिकता और धर्म का प्रचार हुआ।
तुलसीदास का निधन संवत् 1680 (1623 ई.) में वाराणसी के असी घाट पर हुआ। उनकी समाधि वहीं स्थित है।
Tulsidas ka jivan parichay भक्ति, साहित्य और नैतिकता का अद्वितीय संगम है। उन्होंने रामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसे ग्रंथों से जनमानस को श्रीराम की भक्ति से जोड़ा। उनका जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत है और आने वाली पीढ़ियों को आध्यात्मिक दिशा प्रदान करता है।
उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस है, जो अवधी भाषा में लिखी गई है।
तुलसीदास का बचपन का नाम रामबोला था।
पत्नी की एक सीख से प्रभावित होकर उन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग कर रामभक्ति का मार्ग चुना।
हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका, कवितावली, दोहावली, गीतावली।
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